कबीरधाम जिला पंचायत चुनाव: श्री ईशवरी साहू निर्विरोध बने जिला पंचायत कबीरधाम के अध्यक्ष वहीं कैलाश चंद्रवंशी उपाध्यक्ष निर्विरोध निर्वाचित 

कवर्धा। कबीरधाम जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनाव में भाजपा की आंतरिक गुटबाजी एक बार फिर खुलकर सामने आ गई। जहां डिप्टी सीएम विजय शर्मा के करीबी ईश्वरी साहू को निर्विरोध अध्यक्ष चुना गया, वहीं उपाध्यक्ष पद को लेकर पार्टी के भीतर जमकर खींचतान हुई।

नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा की बम्फर जीत के बाद अब पंचायत चुनाव में भी भाजपा का दबदबा कायम रहा है वही जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए चुनाव हुआ जहां भाजपा से ईश्वरी साहू को निर्विरोध अध्यक्ष चुना गया वही निर्विरोध अध्यक्ष चुने जाने के बाद भाजपा के कार्यकर्ताओं ने नवनिर्वाचित अध्यक्ष ईश्वरी साहू को बधाई एवं शुभकामनाएं दी ।

भाजपा के ही दो दावेदार आमने-सामने आ गए—डिप्टी सीएम विजय शर्मा समर्थक कैलाश चंद्रवंशी और पंडरिया विधायक भावना बोहरा समर्थक रोशन दुबे। कुछ समय के लिए स्थिति इतनी उलझ गई कि चुनाव की नौबत आ गई थी। लेकिन कड़ी मान-मनौव्वल और राजनीतिक समीकरणों के बीच आखिरकार रोशन दुबे ने अपना नामांकन वापस ले लिया और कैलाश चंद्रवंशी को समर्थन दिया, जिसके बाद कैलाश निर्विरोध उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए।

 

उपाध्यक्ष पद बना रहा बहुत रोमांचित 

 

कबीरधाम जिला पंचायत में 14 में से 13 सीटें भाजपा के खाते में आई थीं, जिससे यह पहले ही तय था कि अध्यक्ष और उपाध्यक्ष भाजपा के ही होंगे। अध्यक्ष पद पर सहमति तो बन गई, लेकिन उपाध्यक्ष पद के लिए संघर्ष गहराता चला गया।

 

भाजपा की अंदरूनी राजनीति तब खुलकर सामने आई जब पंडरिया विधायक भावना बोहरा के समर्थक रोशन दुबे ने नामांकन दाखिल किया, जबकि डिप्टी सीएम विजय शर्मा के करीबी कैलाश चंद्रवंशी भी दावेदारी पर अड़े रहे। इससे पार्टी में असमंजस की स्थिति बन गई।

 

आखिरकार पार्टी हाईकमान के हस्तक्षेप और गहन चर्चा के बाद रोशन दुबे ने अपना नाम वापस लिया और कैलाश चंद्रवंशी को समर्थन देकर निर्विरोध जीत का रास्ता साफ कर दिया।

 

क्या यह भाजपा के अंदरूनी मतभेदों का संकेत?

 

इस पूरे घटनाक्रम ने भाजपा के भीतर चल रही गुटबाजी को उजागर कर दिया है। हालांकि अंततः समझौता हो गया, लेकिन उपाध्यक्ष पद के लिए खींचतान ने यह संकेत जरूर दिया कि संगठन में आंतरिक कलह और नेतृत्व को लेकर असंतोष की स्थिति बनी हुई है।

 

अब देखना होगा कि यह अंदरूनी गुटबाजी आने वाले चुनावों में भाजपा की मजबूती का कारण बनती है या चुनौती।

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