पंडित विवेक शर्मा की मधुर गायिकी में डूबा कवर्धा, छत्तीसगढ़ राज्योत्सव के समापन पर झूम उठे दर्शक
कवर्धा, 04 नवम्बर 2025।

तीन दिवसीय छत्तीसगढ़ राज्योत्सव 2025 का भव्य समापन कवर्धा में लोकसंस्कृति, संगीत और नृत्य के रंगों से सराबोर माहौल में हुआ। समापन दिवस पर प्रसिद्ध गायक पंडित विवेक शर्मा की मधुर गायिकी ने ऐसा समां बांधा कि दर्शक मंत्रमुग्ध होकर देर रात तक झूमते रहे।

मंच पर गूंजे “मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोला बारम-बार प्रणाम हे”, “बैला के घाघर”, और “मोला बेटा कहिके बुलाए वो” जैसे जसगीतों ने पूरे पंडाल को भक्ति और लोकसंगीत के रंग में रंग दिया। विवेक शर्मा की आवाज़ में छत्तीसगढ़ की माटी की सोंधी सुगंध और लोकजीवन की गहराई झलकती रही। उनके गीतों ने दर्शकों के दिलों को छू लिया और राज्योत्सव की अंतिम रात को यादगार बना दिया।
लोकसंगीत और भक्ति के सुरों से गूंजा समापन समारोह
राज्योत्सव के तीसरे दिन लोक संस्कृति की मधुर छटा बिखेरते हुए रजऊ साहू के गुर्तुर बोली गंवई दल ने “मन मोही डारे कोइली के ताल में” गीत की प्रस्तुति देकर दर्शकों का दिल जीत लिया। कोइली के मधुर सुरों के साथ मंच पर लोक संस्कृति की सुगंध फैल गई। इसी बीच ऊर्जावान पंथी नृत्य ने कार्यक्रम में भक्ति और उत्साह का रंग भर दिया।
स्थानीय कलाकार गिरीश राजपूत ने “झूपत झूपत आबे दाई मोर अंगना वो” और “चंदवा बईगा” जैसे जसगीतों की प्रस्तुति देकर पूरे माहौल को श्रद्धा और लोकभक्ति से भर दिया। उनकी गायिकी में छत्तीसगढ़ की मिट्टी की आत्मा और लोकभावना की गहराई साफ झलकती रही।
बच्चों की प्रस्तुति और कलाकारों का सम्मान

दृष्टि और श्रवण बाधित स्कूली बच्चों की विशेष प्रस्तुति ने कार्यक्रम में भावनात्मक और कलात्मक रंग भरा। उनकी मनमोहक प्रस्तुतियों ने दर्शकों का दिल जीत लिया। वहीं जिले के अन्य कलाकारों ने अपनी लोकनृत्य और गीत प्रस्तुतियों के माध्यम से छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विविधता को जीवंत किया।
समापन अवसर पर उपमुख्यमंत्री श्री विजय शर्मा ने सभी कलाकारों को उनकी उत्कृष्ट प्रस्तुतियों के लिए स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति को जीवंत बनाए रखने में कलाकारों की भूमिका अतुलनीय है।
छत्तीसगढ़ की आत्मा को जीवंत करता राज्योत्सव
तीन दिवसीय राज्योत्सव ने एक बार फिर यह सिद्ध किया कि छत्तीसगढ़ की पहचान उसकी समृद्ध लोक संस्कृति, भक्ति और परंपराओं में निहित है। संगीत, नृत्य और लोकगीतों के इस संगम ने छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक आत्मा को जीवंत कर दिया — “मोर छत्तीसगढ़ महतारी के गीतों से गूंजा राज्योत्सव”।








